
घाव
यूं घाव पर घाव देकर, जख्मों पर दवा लगाना,
जरूरत पड़ने पर, यूं छोड़ कर हमे चले जाना
ये तुम्हारी साज़िश है, या दुनिया की,
बेजुबान अब तुम हो, या ये भी तुम्हारी दुनिया थी,
सुनो भी की..
सब ने घाव बहुत दिए, और वक्त वक्त पर रौंदा है,
ये साज़िश सिर्फ दुनिया की, या तुम्हारा अपना ही घरौंदा है,
अच्छा!
जब पाना तुमको मुमकिन नहीं, तो क्यों आए थे पास मेरे,
जब एक बार से दिल नहीं भरा, तो चारो ओर लगाए फेरे,
जज्बातों से खेलना, हालातों को मजबूर कर दिया,
आज किसी बोले भी ना, मायूस दिल को मगरुर कर दिया,
जब कुछ मुमकिन ही नहीं, खुद को रोकना पड़ता है,
तुमने तो बस पहल की, अब खुद को आग में झोकना पड़ता है,
यूं तिल तिल मरना पड़ता है सब कुछ सहना पड़ता है..।